देखो उस पतंगे को,दिये ने ही जमीं पर उतार दीया..
यही हाल है महोब्बत मे,प्यार करनेवालेने ही नजर से उतार दीया।
क्या खूब प्यारसे पाला था बच्चे को माँ ने ...
बुढी होते ही उसे घर से उतार दीया।
मेरी तो उस खुदा से भी है अनबन..
काफीर समजकर मुझे मझार से उतार दीया।
बडे प्यार से दीया था सहारा कुसुम ने..
'भँवरे' ने फुल का निखार उतार दीया।
ये काँटो का शहर है मेरे यारो..
महोब्बत ने हर आशिक का घमंड उतार दीया।
पीकर हमने यहाँ जन्नत बना ली 'उल्फत'..
उस कमबख्त ने हुर बनकर नशा उतार दीया।
आजकल मशरूफ रहता हुँ ईस कदर..
अपने दर्दो को लफ्जो मे उतार दीया।
-आशीष प्रजापति 'उल्फत'
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