कुछ नहीं मिल पाएगा सजदा बग़ैर
वो कहाँ ख़ुश होता है पूजा बग़ैर
ये तअज्जुब है कि मंज़िल मिल गई
ज़िन्दगी चलती रही रस्ता बग़ैर
किस क़दर आसान है,मुश्किल भी है
ज़िन्दगी जीना किसी इच्छा बग़ैर
क्या कहूँ उस नूर के आलम को मैं
जैसे इक सैलाब हो दरिया बगैर
उसको ढूंढा है पता जिसका न था
इक ख़ज़ाना मिल गया नक्शा बग़ैर
जब तुम्हारे ध्यान में होता हूँ मैं
रहता हूँ दुनिया में और दुनिया बग़ैर
ये हुनर ये फ़न उसे आता है ख़ूब
हर नज़र से छुप गया परदा बग़ैर
एक ऐसी रौशनी की है तलाश
जिस्म हो जाए जहाँ साया बग़ैर
जैसे अंतिम पृष्ठ नाविल में न हो
राम का अस्तित्व क्या सीता बग़ैर
कृष्ण बिहारी 'नूर'
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