आंधिया गम की चलेंगी तो संवर जाऊँगा,
मै तेरी जुल्फ नहीं जो बिखर जाऊँगा..
तुझसे बिछडा तो मत पूछो किधर जाऊँगा,
मै तो दरिया हू समुन्दर में उतर जाऊँगा..
नाखुदा मुझसे न होगी ये खुशामद तेरी,
मै वो खुद्दार हू कश्ती से उतर जाऊँगा..
मुझको सूली पे चढाने की जरुरत क्या है,
मेरे हाथो से कलम छिन लों मर जाऊँगा..
मुझको दुनिया से 'जफ़र' कौन मिटा सकता है,
मै तो शायर हू किताबो में बिखर जाऊंगा..
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"बहादुर शाह जफ़र"
મેં રસ્તાઓ બદલ્યા, મકાનોય બદલ્યાં ને બદલ્યાં શહેરો ને ચહેરા, રમેશ મરણની લગોલગ ગયો તે છતાંયે ન સાચાં પડ્યાં સ્વપ્ન પણ એકબે - રમેશ પારેખ
આજનો મોરલાનો ટહુકો......
Monday, August 24, 2015
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