आदमी सब एक नजर से हैं !
सागरे-रेत' में मगर हैं !!
कूचा-ए-यार में रहेंगे अब !
सोचकर निकले यही घर से हैं !!
मेरे इस दिल के आशियाने पर !
तेरे जुल्मो के अब्र बरसे हैं !!
हर रूखे-हुश्न मे मुझे देखे तुं !
हर परेशाँ इन्ही नजर से हैं !!
बस तेरी इक नजर की खातिर !
हिज्र में दीदे- तर हम बरसे हैं !!
आप वादे को भूल जाते हो !
और 'शील " खामोश मुन्तजिर सी हैं !!
,,, ,, ,, हेमशीला' माहेश्वरी, ,,,,"शील ""
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