जमाने से थोड़े ईतराके चलते हैं
सफर पे सफर काटते चलते है।
तेरे चहेरे की मस्तीया याद है हमें
उसीको दिल मैं छुपाके चलते है।।
राहों मे हो फूल या बिछे हो काटे
पैरों पे खुद को दबाके चलते है।
समंदर है बहुत बडा मगर
प्यासे उसे ठोकर मार के चलते हैै।।
हमें भी हैं चलना किसी के साथ
पर वो किसी ओर के साथ चलते है।
हमारी शराफत हैं या मजबुरी
हम कीसी के सपनों पे नहीं चलते है।।
इंसानों का भरोसा नहीं हैं कुछ
इंसानियत को सब भुला के चलते है।
महोब्बत है कुछ ईस कदर हमें
हम उसकी यादों के साथ चलते है।।
लोग भी यहां के अजीब है
जिंदा को छोड़ के मुदोँ के साथ चलते है।
साकी तु मैंखाना बंध ना कर
हम यहां से सीधा कब्रस्तान चलते है।।
-निकुंज भट्ट
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