काफी कुछ लूटते हुए देखा,कहीं कुछ बिखरते हुए देखा,
आँधियों को बहुत करीब से गुजरते हुए देखा।
लौट के भी तो जा नही शकते उन रास्तो पे,
जिन रास्तो पे कभी जिंदगी को तड़पते हुए देखा।
रब जीने का हौसला दे, दुआ कर रही थी मै,
साथ जिये लम्हों को पलको से गिरते हुए देखा।
तन्हाईयों को निगाहो की फरश पे रखके,
तेरी परछाइयों को ख्वाबोमे घूमते हुए देखा।
उम्र की दहलीज पे खड़ी जिंदगी भी तो अधूरी है,
दिले-नाकाम को इस तरह भी बहलाते हुए देखा।
मिटा शका है भला कौन? दिलो पे कदमो के नख़्श,
हदो में रहकर भी मुहोब्बत को निभाते हुए देखा।
रहमत ही होगी, कहने दो, 'रहमत ही है',
गम-ए-हस्ती में भी जिंदगी को संवरते हुए देखा।
------ काजल ठक्कर
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