फलक तक नया आशीयां हो गया,
अब ये जेरे कदम आस्मां हो गया।
फतहयाब लौटे हर इक परवाज से।
मश्शकत से अपना ये मकां हो गया।
दुहाइ न देना अब कोइ इन्साफ की
जो जीता वो अपना पासबां हो गया।
बे उसुली का जोचल पडा सिलसिला,
हर कदमपर इक बडा इम्तेहां हो गया।
हम लडाते गये अपने अकवाम को,
अपना हाकिम बड़ा राजदां हो गया ।
आज के दौरका आदमी ये क्या हुवा,
बे अदब हो गया व बदजबां हो गया।
नस्ले आदम के ये मासूम नये रुप में
कुछ निहां हो गया कुछ अयां हो गया।
- मासूम मोडासवी
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