याद आया...
चांँद रातो का वो सफर याद आया.
वसस्ल-ए-यार का वो पल याद आया।
दुनिया से कितने दूर जा बैठे थे हम,
खुशनसीबी का वो मंजर याद आया।
खामोश बैठा रहा हाथ मे हाथ लिए,
अनकही बातो का वो आलम याद आया।
कौन सी वो मय, कौन सा वो मयकदा?
उतरा नहीं अब तक वो जाम याद आया।
हुआ था मेहरबाँ कभी आसमा वालाभी
बारिश-ए-रहमत-ए-तमाम याद आया।
काजल ठक्कर
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