दिल तो आख़िर दिल ही ठहरा, कहीं भी भटके उसका क्या
शहर में मेरी बदनामी के होंगे चर्चे उसका क्या ?
तुमने तो रो रो के दुपट्टे पानी पानी कर डाले
हम भी दिल को थाम के रोये चुपके चुपके उसका क्या ?
सुब्ह की सारी किरनें उसने अपने नाम पे लिखवा ली
हम भी सारी रात गये तक जागते बैठे उसका क्या ?
तूने जिनके नाम बताए, वो तो ख़ैर ऐसे ही थे
कुछ लोगों ने तेरे हाथ में पत्त्थर देखे उसका क्या ?
सब को हमारा रहनसहन और खानापीना दीखता है
हमने अपने कच्चे पक्के सपने बेचे उसका क्या ?
हमने ' ख़लील ' अपनी ज़ानिब से सब के सुखदुःख बाँटे है
कोई हमारी भोलीभाली खुशियाँ लूटे उसका क्या ?
- ख़लील धनतेजवी
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