हजी ऐ शब्दने प्रगटाववो बाकी ज छे
गझ़लना अर्थने प्रगटाववो बाकी ज छे
पणेथी अहीं सुधी चोमेर अंधारु ज छे
रहो,ऐक दीपने प्रगटाववो बाकी ज छे
घणी वातो करी छे प्रेमना प्रागट्यनी
सलीबे संतने प्रगटाववो बाकी ज छे
नदीओना प्रवाहो आपणे जाण्या नथी
नदीना पंथने प्रगटाववो बाकी ज छे
हे,पंडितजी तमे पोथी उपर तमने लखो
कलमना कक्षने प्रगटाववो बाकी ज छे
मने आहुत किधो छे हजी हमणा ज में
धूणीऐ धूम्रने प्रगटाववो बाकी ज छे
कहो,क्यांथी करुं प्रारंभ वर्तुलनो हवे
समयना अंतने प्रगटाववो बाकी ज छे
- भरत भट्ट